गजल (बुद्धि मोक्तान)
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तावा माथि तेल भयो
पिठो हाली सेल भयो
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खाने मान्छे धेरै थिए
त्यही ठेला ठेल भयो
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कराउँदै बेच्दा रोटी
पसिनाको भेल भयो
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कति भागे पैसा नदि
हरे ! कस्तो झेल भयो
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तिमी पनि त्यही हुँदा
दुई आँत मेल भयो
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चाख्दा चाख्दै आँखा जुधी
'मायाँ आज खेल भयो'
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तावा माथि तेल भयो
पिठो हाली सेल भयो
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खाने मान्छे धेरै थिए
त्यही ठेला ठेल भयो
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कराउँदै बेच्दा रोटी
पसिनाको भेल भयो
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कति भागे पैसा नदि
हरे ! कस्तो झेल भयो
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तिमी पनि त्यही हुँदा
दुई आँत मेल भयो
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चाख्दा चाख्दै आँखा जुधी
'मायाँ आज खेल भयो'
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