Monday, November 21, 2011

'मायाँ आज खेल भयो'

गजल (बुद्धि मोक्तान)
--------------------
तावा माथि तेल भयो
पिठो हाली सेल भयो
-----------------------
खाने मान्छे धेरै थिए
त्यही ठेला ठेल भयो
 ---------------------
कराउँदै बेच्दा रोटी
पसिनाको भेल भयो
---------------------
कति भागे पैसा नदि
हरे ! कस्तो झेल भयो
 ---------------------
तिमी पनि त्यही हुँदा
दुई आँत मेल भयो
 ---------------------
चाख्दा चाख्दै आँखा जुधी
'मायाँ आज खेल भयो'

No comments:

Post a Comment